हिमाचल में खतरे में हैं रिश्ते। दिनों-महीनों में शादियां टूट रही हैं। भाई-बहन ब्याह रचा रहे हैं। बेटा मां का कत्ल कर रहा है। यही हाल रहा तो कल को मनुष्य और पशु में क्या अंतर करेंगे?
खतरे में है रिश्तों की पवित्रता। बेटे केहाथों मां का कत्ल। घर में बुजुर्ग मां-बाप पर अत्याचार। दिनों-महीनों में शादियों का टूटना। भाई-बहन जीवन साथी बन रहे हैं। अधेड़ स्कूल जाती छात्राओं से छेडख़ानी कर रहे हैं। दफ्तरों में काम करती महिलाओं पर अफसरों की बुरी नजर है। गुरु-शिष्या का रिश्ता सुरक्षित नहीं रहा। शादीशुदा इधर-उधर मुंह मारकर समाज में विकृतियां पैदा कर रहे हैं। यहां तक कि बाप-बेटी और ससुर-बहू के रिश्ते पर भी आधुनिकता के छींटे पड़े हैं। अविश्वास बढ़ रहा है।
हिमाचल में हाल ही की घटनाओं पर एक नजर। चंबा में जमा दो पास एक युवक को कंपनी में नौकरी लगी तो परिवार वालों ने उसका घर बसाने की सोची। शादी हो गई। विवाह के चार-पांच माह तक सब ठीक रहा। एक दिन दुल्हन को याद आया कि मैं तो बीए पास हूं और मेरा पति प्लस टू। इसी वजह से संबंध में दरार पड़ गई। दुल्हन मायके चली गई। तर्क देखिए। शिमला में एक अच्छे घर के लड़के ने आर्थिक रूप से कमजोर परिवार की लड़की ब्याही, ताकि संतुलन बना रहे। छह माह के अंदर यह बंधन भी टूट गया। बहुत समझाया। पर परिणाम सिफर रहा। आरोप है कि विवाहिता अपने पुराने दोस्तों को नहीं भुला पाई। छह माह तक साथ रहा पति उसे जीवन भर का साथ निभाने को नहीं मना पाया। आगे वही हो रहा है जो होता है। दोनों परिवार कोर्ट-कचहरियों में दिन खराब कर रहे हैं। कांगड़ा की घटना तो इनसे भी दो कदम आगे दिखती है। एक अच्छे सरकारी ओहदे पर कार्यरत युवक ने एमफिल प्लस शिक्षित लड़की को जीवन संगिनी बनाया। दो माह में ही इनका संबंध विच्छेद हो गया। लड़की का कहना है कि उसे लड़का पसंद नहीं है। यह क्या बात हुई? अब अंदर की बात कुछ और भी हो सकती है। शादी एक-दो दिन में नहीं हो जाती। लड़का-लड़की एक दूसरे को देखते हैं। उसकेबाद रिंग सेरेमनी। आगे भी कई कुछ। फिर हर दिन मोबाइल पर घंटों लटकेरहना। बावजूद इसके वे एक-दूसरे की पसंद-नापसंद न जान पाए तो उनकेमास्टर डिग्री प्लस पढऩे का कोई फायदा नहीं। समाज की नजरों में उनकी शैक्षणिक योग्यता 'शून्यÓ है।
पालमपुर में खूंखार बहू का तांडव देखिए। डर के मारे पति घर से भाग गया तो बूढ़े सास-ससुर की पिटाई। समाज के सभ्य लोगों से जब यह सहा न गया तो महिला मंडल ने पालमपुर थाना तक मामला पहुंचाया। कांगड़ा की ही एक अन्य घटना ने जैसे समाज का सिर शर्म से झुका दिया। यहां अपने ही कुल में युवक-युवती प्यार कर बैठे। दोनों रिश्ते में भाई-बहन लगते हैं। घर वालों ने समझा-बुझा कर दूर किया तो दोनों ने बिना किसी शर्म-हया के भागकर शादी रचा ली।
लगता है हम मां-बहनों और बहू-बेटियों का रिश्ता भूल रहे हैं। सिरमौर के राजगढ़ में ५० साल के एक व्यक्ति को स्कूल जाती छात्रा से छेड़छाड़ के आरोप में गिरफ्तार किया गया। यह चाचा साहब पहले भी ऐसा कर चुके हैं। राह चलती छात्राओं और महिलाओं से छेड़छाड़ करना इनकी आदत सी बन गई है। क्या सनक है? शिलाई (सिरमौर) की १६ साल की लड़की से हरियाणा के साठ वर्ष के व्यक्ति ने नौकरी का झांसा देकर दुष्कर्म किया। सिरमौर के ही पूर्व सैनिक पर दो छात्राओं को नौकरी का झांसा देकर दुराचार का आरोप सिद्ध हुआ है। उसे जिला सत्र एवं न्यायाधीश नाहन ने तीन वर्ष जेल और ८० हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई है। सोलन केसलोगड़ा जनजातीय छात्रावास में बच्चियों से छेड़छाड़ का मामला तब सामने आया जब उमंग फाउंडेशन ने पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी तक यह बात पहुंचाई। शिमला के टुटू स्थित मूक बधिर आश्रम में छात्राओं से छेडख़ानी की वारदात अब तक जहन में है। हमीरपुर में एक ५५ वर्षीय व्यक्ति ने मंदबुद्धि महिला से दुराचार किया। उक्त महिला शादीशुदा है। मानसिक स्थिति ठीक न होने के कारण मायकेमें रह रही है। पिछले दिनों सोलन में एक विक्षिप्त महिला ने सड़क पर बच्चे को जन्म दिया था। हो न हो उक्त महिला भी दुराचार की शिकार हुई होगी। माना कि बाजार में भीख मांगकर गुजर-बसर करने वाली महिला हमारी कुछ नहीं लगती। पर इनसानियत का रिश्ता तो बनता ही है।
कुछ समय पहले प्रदेश में एक बाप पर बेटी से दुष्कर्म का आरोप लगा था। साथ ही यह भी कहा गया था कि आरोपी नशे में था। कार्यालयों में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। महिला आयोग में ऐसे २० अफसरों की शिकायतें आई हैं, जो महिला कर्मियों को तंग करते हैं। चार निजी स्कूलों केप्रिंसिपल भी आरोपी हैं। सीआईडी ने साल २००९ में दुराचार के मामलों का अध्ययन किया है। कुल १८२ में से ११४ केस निकट संबंधियों के खिलाफ हैं। अपने करीबी लोग ही संबंधों को तार-तार कर रहे हैं। यही हाल रहा तो मनुष्य और पशु में क्या अंतर करेंगे?
एक या दो पीढ़ी पहले दूल्हा-दुल्हन शादी के बाद ही एक-दूसरे को देखते थे। आठ-दस बच्चों के परिवार हमारे पूर्वजों ने सफलतापूर्वक चलाए हैं। इज्जत, मान-मर्यादा को बचाकर रखा। क्योंकि उनमें आपसी विश्वास, सहनशीलता, सभ्यता और समझौतावादी सोच थी। हमें चौंतड़ा (मंडी) की लता की तरह उदाहरण पेश करना होगा। तीन माह में विधवा हो गई लता ने मुखाग्नि देकर चिता तक पति का साथ निभाया। हमें समय रहते समझना होगा और संभलना भी होगा। अन्यथा कल आने वाली पीढ़ी के बहुत कम सभ्य लोग हमें कभी माफ नहीं करेंगे।
(लेखक अमर उजाला से जुड़े हैं)